Friday, February 20, 2009

भ्रष्टाचार के विरुद्ध

पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम को आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी करार दिए जाने का फैसला तेरह साल बाद आया ह
ै। अगर भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे राजनेताओं पर कानूनी शिकंजा कसने की यही गति रही तो करप्शन पर पूरी तरह रोक लगाने का सपना शायद ही कभी पूरा हो। सचाई तो यह है कि सभी राजनीतिक दल भ्रष्टाचार से लड़ने का दावा दोहराते रहते हैं, पर आज तक उन्होंने गंभीरता से इस बात के लिए प्रयास नहीं किया कि करप्शन के मामले में त्वरित कार्रवाई हो और भ्रष्ट लीडर को सजा दिलाई जा सके। उलटे कई सरकारों पर ऐसे मामलों को लटकाने और इसके लिए सरकारी एजंसियों का इस्तेमाल करने के आरोप लगते रहे हैं।

करप्शन का मामला राजनीतिक ब्लैकमेलिंग का भी हथियार बन गया है। भ्रष्ट नेताओं से किनारा करने की बात तो दूर, ज्यादातर पार्टियां ऐसे लोगों को ससम्मान चुनाव में टिकट और पार्टी संगठन में अहम पद दे रही हैं। सुखराम के मामले को ही देखें तो राजनीतिक दलों के दोमुंहेपन का पता चलता है। वर्ष 1996 में दूरसंचार घोटाले के सामने आने के बाद सुखराम को कांग्रेस से निकाल दिया गया। तब उन्होंने 'हिमाचल विकास कांग्रेस' नामक अलग पार्टी बना ली। सुखराम के मामले पर शोर मचाने वाली और इस पर संसद की कार्यवाही तक ठप कर देने वाली बीजेपी ने हिमाचल प्रदेश में सुखराम की पार्टी से समझौता करने में कोई संकोच नहीं दिखाया। यह जानते हुए भी कि सुखराम पर कितना गंभीर मामला चल रहा है, कांग्रेस ने 2004 में उन्हें फिर से गले लगा लिया और उनकी पार्टी का विधिवत कांग्रेस में विलय हो गया। कांग्रेस के लिए सुखराम कितने अहम हैं, इसका अंदाजा तब लगा जब राहुल गांधी पिछले विधानसभा चुनाव में उनके बेटे के पक्ष में प्रचार करने हिमाचल प्रदेश पहुंच गए। इस बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सुखराम को मंडी से टिकट देने पर विचार कर रही थी। कांग्रेस और बीजेपी ने साफ भुला दिया कि सुखराम के घरों पर मारे गए छापे में घर के कोने-कोने से नोटों के बंडल निकले थे और अदालत ने न सही, पर जनता ने उन्हें उसी वक्त दोषी मान लिया था। करप्शन के खिलाफ लड़ाई सिर्फ नारों से नहीं लड़ी जा सकती, इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है जिसका दुर्भाग्य से अधिकतर दलों में अभाव दिखता है। शायद यही वजह है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध बने तमाम नियम-कानून धरे के धरे रह जाते हैं। यह एक गंभीर मसला है जिस पर समाज के सभी वर्गों को विचार करना होगा।