Thursday, January 29, 2009

'38 के उमर CM, तो राहुल PM क्यों नहीं'




कांग्रेस का डर सच साबित हो रहा है। लोकसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बताने वाले बयानों की तादाद बढ़ने लगी है। इन्हीं आशंकाओं का पूर्वानुमान करके कांग्रेस ने 'सोनिया-राहुल को चापलूसी पसंद नहीं' का कड़ा बयान दिया था। विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी के हालिया बयान के बाद मीडिया कांग्रेस के नेताओं से सबसे पहला सवाल राहुल को प्रधानमंत्री बनाने के बार में ही पूछ रहा है। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने लुधियाना में इस बारे में पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब में कहा कि अगर जम्मू-कश्मीर जैसे महत्वपूर्ण राज्य में 38 साल के उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री हो सकते हैं, 40 साल की उम्र में राजीव गांधी प्रधानमंत्री बन सकते हैं तो 38 की आयु में राहुल पीएम क्यों नहीं बन सकते? मनीष ने लोकसभा चुनाव के बाद राहुल के प्रधानमंत्री बनने की संभावनाओं को बल देते हुए कहा कि अगर कांग्रेस पर्याप्त सीटें जीतकर आती है और यूपीए को बहुमत मिलता है तो राहुल के नाम पर विचार हो सकता है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अगला चुनाव कांग्रेस सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में लड़ेगी। कांग्रेस ने शुक्रवार को मनमोहन सिंह की प्रशंसा करते हुए कहा था कि उन्होंने अच्छा काम किया है। दरअसल प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के सवाल पर कांग्रेस का संकट यह है कि वह मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते किसी दूसरे नाम को सामने लाकर बेवजह का विवाद पैदा करना नहीं चाहती। बीजेपी प्रधानमंत्री की उम्मीदवारी के सवाल को लेकर इसी तरह की समस्या से जूझ रही है। कांग्रेस को भी ऐसे ही अखाड़े में घसीटने के लिए बीजेपी बार-बार पूछती है कि वह बताए कि उनका प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कौन है? कांग्रेस राहुल को भविष्य का नेता बताते हुए कहती है कि यह राहुल को ही तय करना है कि वह कब नेतृत्व संभालना चाहते हैं। पिछले साल 15 अगस्त को मनमोहन सिंह को भी मीडिया के ऐसे ही मुश्किल सवाल से रूबरू होना पड़ा था। लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज फहराकर कांग्रेस मुख्यालय आए मनमोहन से पूछा गया कि क्या अगले साल भी वह लाल किले पर झंडा फहराएंगे? मतलब अप्रैल-मई 2009 में लोकसभा चुनाव होने के बाद क्या कांग्रेस उन्हें एक मौका और देगी? सोनिया की मौजूदगी में मनमोहन से पूछे गए इस सवाल का जवाब सोनिया ने दिया था। सोनिया का जवाब था कि 'क्यों नहीं! अवश्य ।' इस संक्षिप्त जवाब को लेकर कई तरह की बातें होती रही हैं। मनमोहन के समर्थक और राहुल के नजदीक नहीं पहुंच पाए नेता इसके जरिए यह बताने की कोशिश करते हैं कि सोनिया ने मनमोहन के पक्ष में स्थिति स्पष्ट कर दी है। मगर दूसरी तरफ राहुल को जल्दी ही प्रधानमंत्री बनते देखना चाहने वाले कहते हैं कि सोनिया ने समयानुकूल जवाब देकर मनमोहन का मनोबल बढ़ाया था। प्रधानमंत्री का फैसला तो चुनाव के बाद ही होगा।

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