Friday, March 6, 2009

तीसरे मोर्चे की कवायद


चुनाव की घोषणा के साथ तीसरे मोर्चे की कवायद आम मतदाता की नजर में मूलत: एक राजनीतिक प्रहसन है। हालांकि माकपा के नेतृत्व वाला वाममोर्चा पिछले साल की शुरुआत से ही तीसरे विकल्प की बात करने लगा था और उसने कुछ कोशिशें भी कीं लेकिन वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में यह सफल न हो सका। वास्तव में राजनीति के चरित्र एवं विकास नीतियों में मौलिक बदलाव के आंदोलन की भावना से यदि तीसरा मोर्चा अस्तित्व में आए तो उसका स्वागत किया जाएगा, लेकिन आसन्न चुनाव के पहले इसका उद्देश्य केवल संगठित होकर सत्ता समीकरण में अपनी ताकत बढ़ाना ही हो सकता है। ठीक यही बात चुनावोपरांत ऐसे मोर्चे के गठन के संदर्भ में भी कही जा सकती है। तीसरा मोर्चा यानी कांग्रेस तथा भाजपा से अलग राजनीतिक समूह। वैसे तीसरे मोर्चे के मुख्य निशाने पर भाजपा रहती है और इसका आधार तथाकथित सेक्यूलर राजनीति को बनाया जाता है। तर्क यह होता है कि भाजपा चूंकि सेक्यूलर विरोधी है, इसलिए सेक्यूलरवाद को बचाने के लिए वे इकट्ठे हो रहे हैं। यह बात अलग है कि जो दल सेक्यूलरवाद की दुहाई देकर तीसरा मोर्चा या संप्रग का भाग होते हैं उनमें से कई भाजपा के साथ हाथ मिला चुके हैं। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा तीसरे मोर्चे के लिए सबसे ज्यादा सक्रिय हैं। उनकी पार्टी कर्नाटक में भाजपा के साथ सरकार चला चुकी है। अन्नाद्रमुक की जे. जयललिता भाजपा गठजोड़ में शामिल रही हैं। तेलुगूदेशम भी भाजपा नेतृत्व वाली सरकार को समर्थन देने के साथ मिलकर चुनाव लड़ चुका है। इस प्रकार इनकी विख्ासनीयता समाप्त है। देवेगौड़ा की तीसरे मोर्चे के लिए सक्रियता का उद्देश्य क्या हो सकता है? पांच सालों तक लोकसभा में रहते हुए भी सत्ता समीकरण या विपक्षी गठजोड़ में कहीं उनकी कोई भूमिका नहीं थी। चन्द्रबाबू नायडू को इस समय अपने मुस्लिम मतों की चिंता सताने लगी है। वामदलों के लिए तो तीसरा मोर्चा केन्द्रीय राजनीति में महत्ता कायम रखने का एकमात्र आधार है। अगर भाजपा एवं कांग्रेस से अलग कोई मोर्चा न हो तो फिर वे नेतृत्व किसका करेंगे। ऐसी पृष्ठभूमि से किसी राजनीतिक समूह का आविर्भाव होता है तो उसकी विख्ासनीयता क्या होगी? वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में किसी सशक्त तीसरे मोर्चा का उभरना वैसे ही असंभव है। तेलूगु देशम के चन्द्रबाबू नायडू, जनता दल सेक्यूलर के देवेगौड़ा के अलावा ऐसा कोई दल निश्चित तौर पर तीसरे मोर्चा का भाग बनने को अभी तैयार नहीं है। जयललिता जब तक औपचारिक तौर पर इसका भाग बनने की स्वयं घोषणा नहीं करतीं, उनके बारे में कुछ भी कहना संभव नहीं है। अच्छा होगा कि वामदल तीसरे मोर्चे के गठन के प्रयास की बजाय अपनी सीटों को बचाने पर ध्यान केन्द्रित करें।

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