Friday, March 6, 2009

लोकतंत्र का महायज्ञ


चुनाव आयोग द्वारा पांच चरणों में लोकसभा चुनाव आयोजित करने की घोषणा राजनीतिक दलों की इस मांग की अस्वीकृति है कि चुनाव कम चरणों में और कम समय में आयोजित किये जाएं। अधिकतर राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग के साथ बैठक में यह अनुरोध किया था कि चुनाव को ज्यादा लंबा न खींचा जाए। लगता है चुनाव आयोग जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों में कम समय में शांतिपूर्ण एवं निष्पक्ष मतदान को लेकर आश्वस्त नहीं था। लेकिन इतने लंबे समय तक चुनाव खींचने के कारण आचार संहिता की तलवार विकास कार्यो पर लटकी रहेगी। जाहिर है अगर चुनाव को लंबा खींचना था तो आचार संहिता में इतना संशोधन अवश्य होना चाहिए था ताकि आम विकास के कार्य इससे अप्रभावित रहें। खैर, चूंकि हमारे संसदीय लोकतंत्र का आधार आम चुनाव हैं, इसलिए हम इस स्थिति को झेलने के लिए तैयार हैं। बशर्ते चुनाव वाकई स्वतंत्र एवं भय रहित वातावरण में संपन्न हो जाएं। लंबे समय बाद लोकसभा के चुनाव परिसीमन के बाद संशोधित क्षेत्रानुसार आयोजित हो रहा है। 499 लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं जिनका परिसीमन हो गया है। जाहिर है ऐसे कई उम्मीदवारों के लिए नये क्षेत्र एवं नये मतदाता से रू-ब-रू होने की अग्नि-परीक्षा है तो कई सांसदों के लिए क्षेत्र ही नहीं बचा। जाहिर है लोकसभा चुनाव के परिणामों पर भी इसका असर होगा। वर्तमान विखंडित राजनीति में इतनी बड़ी संख्या में परिसीमित क्षेत्र राजनीतिक वर्णक्रम में कुछ न कुछ परिवर्तन अवश्य लाएंगे। हालांकि चुनाव आयोग के लिए इससे कोई अंतर नहीं पड़ने वाला। राष्ट्रव्यापी चुनाव प्रबंधन में जो कुछ परिसीमन के पूर्व करना होता था, वही अब भी होगा। इस नाते चुनाव आयोग की चुनौतियां पूर्ववत हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी 20 अप्रैल को सेवानिवृत्त हो रहे हैं, इसलिए अंतिम चार चरण का चुनाव उनके उत्तराधिकारी नवीन चावला के नेतृत्व में संपन्न होगा। भाजपा जिस ढंग से नवीन चावला को निशाना बना रही है उसे चुनाव में बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना सकती है। देश के मुख्य विपक्षी दल का मुख्य चुनाव आयुक्त पर विश्वास न करना ऐसी अशोभनीय स्थिति है जिसे टाले जाने की आवश्यकता है। यह नवीन चावला के लिए भी बहुत बड़ी चुनौती होगी। उनके लिए यह आवश्यक होगा कि वे स्वयं को अपनी भूमिका से बिल्कुल निष्पक्ष व पारदर्शी साबित कर दें। हम यही चाहेंगे कि हमारे लोकतंत्र का यह महायज्ञ आम मतदाता की पवित्र मत-आहुतियों से निर्विघ्न संपन्न हो जाए और चुनाव आयोग अपने तमाम विवादों से परे इसके निष्पक्ष वाहक बनें। उम्मीद करनी चाहिए कि राजनीतिक दल भी चुनाव आयोग के संदर्भ में अपने राजनीतिक मतभेदों से परे हटकर इस महाअभियान को शांतिपूर्ण एवं निष्पक्ष तरीके से संपन्न कराने में योगदान करें।

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