Sunday, March 22, 2009

बिहार की फांस


बिहार में संप्रग के बीच मतभेद से सीधा लाभ अगर किसी को होगा तो वह है भाजपा एवं जद-यू गठजोड़। हालांकि यह बात तो संप्रग के नेताओं को भी पता है लेकिन यहां उनकी वही एकता गायब है जो सरकार में दिखाई देती है। लोजपा के नेता राम विलास पासवान के दबाव में लालू प्रसाद ने उन्हें 12 स्थान दिए और अपने लिए 25 रखे। कांग्रेस को तीन स्थान दिये गये। इसके साथ मान ही यह लिया गया कि बिहार में संप्रग का गठजोड़ हो चुका है। लेकिन कांग्रेस एवं राकांपा तो बिफरी ही, स्वयं राजद के अंदर भी फूट पड़ गयी। कारण ढूंढि़ए तो एक ही नजर आता है, कोई निजी स्तर पर स्वयं को संसद पहुंचने से वंचित मान रहा है तो ये दोनों दल यह मान रहे हैं कि उनके जितने सांसद हो सकते हैं, इस समझौते में उसे नजरअंदाज कर दिया गया है। कांग्रेस ने 2004 में चार स्थानों पर लड़कर तीन सीटें पाई थीं। उसे लगता है कि उसे इस बार ज्यादा स्थान मिलने चाहिए थे। कांग्रेस अगर बिहार में संप्रग का अंत मानकर स्वयं उम्मीदवार उतारती है तथा राकांपा भी घोषणानुसार 14 स्थानों से उम्मीदवार खड़े करती है तो फिर इनके बीच आपस में ही संघर्ष होगा। राजद के अंदर यदि कुछ नेता अपने ऐलान के अनुसार लोजपा एवं अपनी पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ ताल ठोकेंगे तो इसका परिणाम क्या होगा यह बताने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन क्या यह स्थिति अस्वाभाविक है? कतई नहीं। वास्तव में सत्ता के लिए गठजोड़ की जो राजनीति की जा रही है यह सब उसकी स्वाभाविक परिणति है। सरकार के लिए एकत्रित होना एक बात है पर इससे दलीय प्रतिस्पर्धा का पूरी तरह अंत नहीं हो जाता। संसदीय अंकगणित में हर दल एवं व्यक्ति अपना संख्याबल मजबूत रखना चाहता है। उसे मालूम है कि उसकी औकात का आधार उसके सांसदों की संख्या ही है। इसलिए कोई आसानी से अपनी एक भी सीट दूसरे को लड़ने के लिए नहीं देना चाहता, जबकि व्यावहारिक तौर पर वे एक गठजोड़ के ही सदस्य होते हैं। बिहार ही क्योें, आप उत्तरप्रदेश में देख लीजिए, सपा एवं कांग्रेस के बीच चाहते हुए भी सहमति नहीं बन पा रही है। महाराष्र्ट्र में कांग्रेस एवं राकांपा के बीच कुछ सीटों पर रस्साकशी चल रही है। प. बंगाल में भी लंबे समय तक गतिरोध कायम रहा। उड़ीसा में भाजपा-बीजद गठजोड़ टूटने के कारण चाहे जो हों लेकिन बीजद का तर्क यही था कि भाजपा जितनी सीटें मांग रही थी उतने पर उनके जीतने की संभावना नहीं थी। साफ है कि गठजोड़ की राजनीति में सरकार या विपक्ष में एक साथ काम करते हुए भी नेताओं के बीच एक दूसरे के प्रति इतना संवेदनशील लगाव नहीं हो पाता कि वे अपनी एक-दो सीटों का भी दूसरे के लिए परित्याग कर दें।

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