Tuesday, April 28, 2009

राजनीतिक कलाबाजी..................

चुनाव समाप्त होने के पूर्व ही राजनीतिक दलों द्वारा अगली सरकार को लेकर की जा रही बयानबाजी वास्तव में ऐसी अशोभनीय राजनीतिक कलाबाजी है जिसकी आलोचना किए जाने की आवश्यकता है। यह कलाबाजी ज्यादातर संप्रग के पूर्व घटकों, कांग्रेस एवं वामपंथी दलों की ओर से ही प्रदर्शित की जा रही है। कांग्रेस ने पहले राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव पर टिप्पणी की तो लालू ने उसका जवाब यह कहकर दिया कि उनका तो वामपंथियों से पुराना रिश्ता रहा और उनके लिए हमेशा दरवाजा खुला है। उनके नए-नए मित्र बने रामविलास पासवान ने भी उनकी हां में हां मिला दी। माकपा तो लगातार यही साबित करने की कोशिश कर रही है कि चुनाव के बाद कांग्रेस या भाजपा के नेतृत्व में सरकार गठित होने की कोई संभावना नहीं है और जो दल उनके साथ हैं वे भी हालात देखकर तीसरे मोर्चे के साथ आ जाएंगे। इसके विपरीत जो भी बातें सामने आतीं हैं माकपा तुरत उसका खंडन कर अपनी इस स्थापना को दुहराती है। इन कलाबाजियों में अगले प्रधानमंत्री पर भी चर्चा शामिल है। ऐसी चर्चा जब आप करेंगे तो प्रधानमंत्री पद का प्रश्न उठेगा ही और इसी प्रक्रिया में माकपा महासचिव प्रकाश करात का नाम बतौर प्रधानमंत्री उछल गया। हालांकि उन्होंने अगले दिन इसका खंडन कर दिया। किंतु इससे आम मतदाता के मन में कई प्रकार के संशय उभरने लगे हैं। इसमें सबसे बड़ा प्रश्न राजनीतिक नैतिकता का है। इनकी कलाबाजी से संदेश यह निकल रहा है कि इस समय चाहे कोई दल किसी के साथ गठजोड़ करके चुनाव लड़ रहा हो सरकार बनाने में उनका साथ रहना आवश्यक नहीं है। वे राजनीतिक परिस्थितियां बदलते ही अपनी निष्ठा बदलकर जिधर ज्यादा संख्याबल होगा, उधर मुड़ जाएंगे। ऐसे में मतदाता के सामने बार-बार यह प्रश्न कौंधता है कि तो फिर मत किसे दिया जाए? जो आज साथ है उसके आगे रहने की गारंटी ही नहीं है और विजय का लाभ उठाकर वह अपना पाला बदल देगा तो फिर उसे मत दिया क्यों जाए? मतदाता यदि गठजोड़ या चुनावी तालमेल के साथी के तौर पर किसी दल या उम्मीदवार को मत देता है तो उसकी अपेक्षा यही है कि वह उसका सम्मान करे। यानी पाला न बदले। किंतु वामदलों और संप्रग के पूर्व एवं वर्तमान साथी दलों के रवैये से मतदाता की इस स्वाभाविक अपेक्षा की खिल्ली उड़ रही है। इससे बड़ी राजनीतिक अनैतिकता और क्या हो सकती है कि जिस दल या गठजोड़ के खिलाफ आप आग उगल रहे हैं, कल उनसे ही यह उम्मीद करते हैं कि वह अपनी धारा बदलकर आपके साथ आ जाए! वामदलों का रवैया उन दलों को एक प्रकार से अपने साथ आने का निमंत्रण देने वाला है। अगर ये राजनीति की बची-खुची प्रतिष्ठा की रक्षा करना चाहते हैं तो अपना रवैया बदलें एवं मतदाताओं की भावनाओं का सम्मान करें।

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