Tuesday, April 28, 2009

मुद्दा : विकास की राह से दूर ग्रामीण महिलाएं..........


देश की करीब 70 फीसद आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। उसमें से अधिकतर लोग कृषि कार्यों पर निर्भर रहकर जीवन-यापन करते हैं। इनमें से आधी आबादी यानी महिलाएं घर गृहस्थी संभालने के साथ-साथ कृषि कार्यों में हाथ बटांती हंै। उनकी इस महत्वपूर्ण भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। घर से खेती तक तथा खेत-खलिहानों से गोदामों तक सभी कार्यों में उनकी बराबरी की हिस्सेदारी है। यह अलग बात है कि इतना होने पर भी उनकी कोई खास पहचान नहीं है क्योंकि अर्थव्यवस्था की चाबी प्राय: पुरूषों के हाथों में है। अत: वे तरक्की की राह पर नहीं बढ़ पातीं। उनकी राह में अशिक्षा, अनभिज्ञता, उदासीनता, अंधविश्वास आदि रोड़े का काम करते हैं। ऐसी स्थिति में राष्ट्र विकास में अपनी छिपी भूमिका रखने वाली इन महिलाओं के सशक्तीकरण पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। इसके लिए उनकी शिक्षा का समुचित प्रबंध करना आज की जरूरत है।असल में शहरी क्षेत्रों में तो महिलाओं के लिए अनेक अवसर उपलब्ध होते हैं। वे अपने लिए नए रास्ते आगे बढ़ सकती हैं परन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में न तो ऐसी परिस्थितियां मौजूद हैं और न ही उन्हें इतना अधिकार है कि वे स्वतंत्र माहौल में रहकर शिक्षा ग्रहण करें या करियर के बारे में सोचें। जरूरी है कि उन्हें जागरूक बनाकर उनके रास्ते की बाधाओं के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई जाए। कृषि कार्यों के दौरान भी उनकी शिक्षा का पुख्ता इंतजाम होना चाहिए ताकि उनमें अधिक जागरूकता बढ़े तथा वे और अधिक सृजनात्मक तरीके से कार्य कर सकें। उनके लिए समय व श्रम बचाने वाली तकनीकी जानकारी सरल भाषा में रोचक ढंग से उन तक पहुंचने का प्रबंध होना चाहिए।देश में कुल महिला श्रमबल का प्रतिशत 23 है जबकि कृषि कार्यों में लगभग 55-60 फीसद है। पहाड़ी क्षेत्रों में तो लगभग 75 फीसदी कृषि कार्य महिलाएं ही करती हंै। हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, प.बंगाल, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आदि पहाड़ी क्षेत्रों में अधिकतर महिलाएं ही खेतीबाड़ी संभालती हंै। अन्य जगहों पर भी महिलाएं खेती संबंधित कार्यो में हाथ बटांती हैं। ऐसे में सरकार को भी इनके लिए आवश्यक सुविधाओं का प्रबंध करना चाहिए ताकि इनमें और अधिक विश्वास और कार्यक्षमता का विस्तार हो सके। वैसे सरकार की तरफ से रेडियो व टेलीविजन के माध्यम से इनके लिए लगातार जागरूकता कार्यक्रम प्रस्तुत होते रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप कृषि से संबंधित जानकारी का फायदा इन तक पहुंचाया जा रहा है। कुछ क्षेत्रों में तो इनके सकारात्मक परिणाम दिखने भी लगे हंै पर इतना काफी नहीं है। दूर-दराज के इलाकों में ज्यादा ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है ताकि अंधेरे में आशा की रोशनी जलाई जा सके।सर्वविदित है कि हमारी जनसंख्या में आधा हिस्सा महिलाओं का है और वे देश के विकास में पुरूषों के बराबर ही महत्व रखती हंै। स्वतंत्रता के पूर्व ग्रामीण महिलाओं की स्थिति शोचनीय थी। महिलाओं के प्रति रूढ़िवादी एवं परंपरागत सोच ने उन्हें चारदीवारी तक सीमित रखा परन्तु अब उन्होंने दायरे को तोड़कर बाहर निकलने की कोशिश की है। कृषि कार्यों के साथ-साथ महिलाओं ने बड़ी तादाद में घरेलू दायित्वों के अतिरिक्त कारखानों, बागानों, खदानों, डेरी, पशुपालन, पोल्ट्री-फार्म, चाय बागान, रेशम कीट-पालन तथा कृषि से संबंधित लघु उघोगों मे भी योगदान कर रही हैं। कृषि कार्यों में प्रत्यक्ष योगदान के बावजूद भी उन्हें कृषक श्रेणी में नहीं रखा गया है जबकि वे कृषि में सभी प्रकार के कार्य करती हैं। महिलाओं के प्रत्यक्ष योगदान एवं सक्रिय भागीदारी से अनेक क्षेत्रों में पैदावार बढ़ाने में भी मदद मिली है।कृषि मंत्रालय ने इनके विकास के लिए अनेक योजनाओं के माध्यम से सशक्तीकरण कार्यक्रम चला रखे हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति में सुधार आ रहा है। देश में लगभग 500 से ज्यादा कृषि विज्ञान केन्द्र कार्य कर रहे हैं। इनके द्वारा ग्रामीण विकास हेतु कृषि कार्यों में संलग्न महिलाओं के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। आवश्यकता है ग्रामीण महिलाओं को आगे बढ़कर पहल करने तथा रूचि लेकर लाभ उठाने की। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य यह होना चाहिए कि किसान परिवार की आम महिलाएं यह जान सकें कि स्वच्छता, समुचित शिक्षा, पोषण, वैज्ञानिक द्वष्टिकोण आदि से जागरूकता बढ़ती है और विकास कार्य के लक्ष्य की प्राप्ति बिना महिलाओं की भागीदारी के अधूरी है।वैश्वीकरण के इस दौर में महिलाए कृषि कार्यों में रीढ़ का काम करती हैं। जितनी तेजी से महिलाओं का विकास होगा उतनी ही तेजी से सामाजिक विकास होगा तथा एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण होगा। अत: महिलाओं के विकास को बढ़ावा देने की आवश्यकता है ताकि कृषि कार्यों के साथ-साथ वे अन्य क्षेत्रों में भी उतनी ही भागीदारी निभा सकें।

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