Friday, February 6, 2009

भ्रष्टाचार के विरूद्ध एक मुख्यमंत्री की जंग


बिहार इतिहास के एक नाजुक मोड़ पर खड़ा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में गत तीन वर्षों में फर्क ला दिया है। एक मीडिया समूह ने नीतीश को पालिटिशियन ऑफ द इयर चुना है। केंद्र सरकार ने बिहार सरकार को ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिए स्वर्ण पदक दिया है। पूंजी निवेश के क्षेत्र में बेहतर उपलब्धि को देखते हुए एसोचेम ने कहा है कि बिहार अब बीमारू राज्यों की जमात से बाहर निकल रहा है। ये तीनों खबरें पिछले हफ्ते आई हैं। पर इससे अनेक जद (यू) कार्यकर्ता, नेता व प्रशासन के भ्रष्ट लोग कतई प्रभावित नहीं हैं। इसकी बानगी दिखी हाल ही में राजगीर के जनता दल (यू) चिंतन शिविर में जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने झल्ला कर कहा कि यदि आपको लूट की छूट चाहिए तो आप मेरी जगह दूसरा नेता चुन लीजिए। इससे पहले उन्होंने अपनी विकास यात्रा के दौरान प्राप्त कटु अनुभवों को देखते हुए यह ऐलान कर दिया कि वे अपनी ही सरकार के भ्रष्ट अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ चौतरफा जंग करेंगे। शायद एक दो हफ्तों में उस प्रस्तावित जंग का ठोस स्वरूप भी सामने आ जाएगा। यह अजीब बात है कि कोई मुख्यमंत्री अपने ही दल के अनेक कार्यकर्ताओं और अपनी ही सरकार के अधिकतर अफसरों व कर्मचारियों में मौजूद लोभ की प्रवृत्ति से इतना विचलित हो जाए। ऐसा लगता है कि यह एक आंतरिक जंग है। देखना है कि इसमें अंतत: कौन जीतता है।राजगीर के चिंतन श्वििर में कार्यकर्ताओं के सरकार विरोधी भाषणों ने नीतीश कुमार की चिंता बढ़ा दी। उन्हें अपने समापन भाषण में यह कहना पड़ा कि यदि कार्यकर्तागण इतने ही नाराज हैं तो वे अपना नया नेता चुन लें। पर यदि मुझे चुना है तो मैं अपने ही ढंग से काम करूंगा और किसी को लूट की छूट नहीं दूंगा। यानी जद(यू)कार्यकर्ताओं के एक बड़े हिस्से के दिलोदिमाग पर से अब भी पुरानी राजनीतिक कार्य संस्कृति का भूत नहीं उतर रहा है। कमोबेश यही स्थिति उस प्रशासनिक कार्यपालिका की है जिसका साथ लेकर नीतीश कुमार बिहार का कायापलट करना चाहते हैं। नीतीश कुमार ने हाल ही में चंपारण के गांवों में 5 रातें बिताने के बाद पटना में एक सार्वजनिक मंच से जनता से अपील कर दी कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ हल्ला बोल दें। सरजमीं की फर्स्ट हैंड जानकारी लेकर लौटे मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार में भ्रष्टाचार के खात्मे के बगैर विकास का लाभ आम जनता तक नहीं पहुंच सकता। हम जहां-तहां से साधन जुटा कर उसे इस गरीब राज्य के विकास कार्यों में खर्च करना चाहते हैं, पर भ्रष्टाचार में वे पैसे बीच में ही लूट लिए जाएं, यह हम बर्दाश्त नहीं कर सकते। उससे पहले वे खुद भी राज्य भर के सरकारी दफ्तरों में फैले भीषण भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ कारगर प्रशासनिक व कानूनी कार्रवाइयां करने जा रहे हैं, उनकी ताजा टिप्पणियों से यह संकेत मिला है। यह जानकारी तो उन्हें पहले से ही थी कि राज्य सरकार के अफसरों और कर्मचारियों में व्यापक भ्रष्टाचार के कारण सरकारी विकास व कल्याण योजनाओं का कम ही लाभ आम जनता तक पहुंच पा रहा है। इसीलिए उन्होंने कह रखा था कि वे अब भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार अफसरों और कर्मचारियों के मुकदमों की सुनवाई त्वरित अदालतों में कराने की व्यवस्था कराएंगे। साथ ही उन्होंने यह भी घोषणा कर रखी है कि घूसखोरी के आरोप में सरकारीकर्मियों को पकड़वाने वालों को 50 हजार रूपए तक का इनाम दिया जाएगा। यदि किसी भ्रष्ट अफसर के पकड़े जाने पर बड़ी मात्रा में काले धन का पता चलता है तो उस राशि का दो प्रतिशत इनाम के रूप में अलग से मिलेगा। उन्होंने अपने दल के कार्यकर्ताओं से पहले अपील की थी कि वे भ्रष्टों को पकड़वाने में सरकार की मदद करें। पर कोई कार्यकर्ता अब तक सामने नहीं आया। आज की राजनीति ही ऐसी हो चुकी है कि शायद ही किसी राजनीतिक कार्यकर्ता को घूसखोरों पर अब कोई गुस्सा आता है। इसी कारण मुख्यमंत्री को आम जनता से अपील करनी पड़ी। देखना यह है कि कहां से कितनी मदद मिलती है, पर संकेत है कि राज्य सरकार त्वरित अदालतों के गठन के लिए जल्दी ही पटना हाई कोर्ट से गुजारिश करेगी। अपराध से संबंधित मुकदमों की सुनवाई के लिए बिहार में गठित त्वरित अदालतों ने कमाल किया है। गत तीन साल में करीब 28 हजार अपराधियों को निचली अदालतों से सजाएं मिल चुकी हैं। नतीजतन अब बिहार में ‘जंगल राज’ नहीं है।आम लोगों ने उनकी विकास यात्रा के दौरान चंपारण में मुख्यमंत्री को बताया कि डकैतों का भय तो अब नहीं है, पर भ्रष्ट अफसर डकैत की तरह ही गरीब जनता को लूट रहे हैं। बिना घूस के सरकार का कोई काम नहीं हो रहा है। यह सुशासन नहीं बल्कि घूस–शासन है। पांचों दिन मुख्यमंत्री को यही सुनना पड़ा। नीतीश कुमार ने देखा कि उनके भ्रष्ट अफसर और कितने ताकतवर हो चुके हैं कि उन्हें किसी की कोई परवाह ही नहीं हैं ! मुख्यमंत्री तो भ्रष्टाचार पर अपराध की तरह ही काबू पाने की कोशिश करेंगे। उसमें उन्हें सफलता भी मिल सकती है जिस तरह अपराध के मोर्चे पर मिल चुकी है। पर सवाल यह है कि भ्रष्ट अफसर और कर्मचारी इतने निर्भीक कैसे हो चुके हैं कि उन्हें एक ऐसे मुख्यमंत्री की भी कोई परवाह नहीं है जो भीषण सरकारी भ्रष्टाचार का खात्मा चाहता है? बिहार के निगरानी दस्ते ने पिछले तीन साल में महा निदेशक स्तर के पुलिस अफसर और कलक्टर स्तर के आईएएस अफसर को भी भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया। इसके बावजूद सरकारी दफ्तरों में गत तीन साल में भ्रष्टाचार बढ़ा।बिहार सरकार में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं है। इस भ्रष्टाचार ने तो सभी मानकों में बिहार को देश के राज्यों की सूची में पिछले वर्षों में सबसे निचले पायदान पर ठेल दिया था। सन् 1998 में तत्कालीन केंद्रीय ग्रामीण विकास सचिव एनसी सक्सेना ने कहा था कि बिहार में नौकरशाही के सर्वोच्च शिखर तक चूंकि भ्रष्टाचार बढ़ रहा है, इसलिए निचले तबके के अधिकारियों के मन में पैसा बनाने के खिलाफ भय समाप्त हो गया है।’ नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद लगा था कि यह समाप्त हुआ भय वापस आ जाएगा। पर, ऐसा नहीं हुआ।ऐसा क्यों हुआ ? सवाल यह है कि ऐसे भ्रष्ट सरकारी मुलाजिमों को ताकत कहां से मिल रही है? दरअसल उन्हें ताकत राजनीतिक कार्यपालिका के एक बड़े हिस्से और अनेक जन प्रतिनिधियों के भ्रष्ट आचरण से मिल रही है। एमपी–विधायक फंड में जारी घूसखारी और कमीशनखोरी ने अफसरों और कर्मचारियों को और भी बेखौफ और निर्लज्ज बना दिया है। ऐसे जन प्रतिनिधियों की संख्या अब काफी कम है जो अपने फंड के बदले ठेकेदारों से कमीशन नहीं लेते। एमपी–विधायक फंड से हो रहे निर्माण कार्यों का कार्यान्वन और पर्यवेक्षण वही अफसर, ठेकेदार और इंजीनियर करते हैं जो राज्य के अन्य विकास कार्यों का काम करते हैं। वीरप्पा मोइली के नेतृत्व वाले प्रशासनिक सुधार आयोग ने यूं ही इस बात की सिफारिश नहीं की है कि एमपी–विधायक फंड को समाप्त कर दिया जाना चाहिए। हालांकि राजनीति और प्रशासन पर इसके कुप्रभाव को देखते हुए बिहार के तीनों प्रमुख नेता नीतीश कुमार लालू प्रसाद यादव और राम विलास समय-समय पर यह कह चुके हैं कि एमपी–विधायक फंड को समाप्त कर दिया जाना चाहिए।

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