Wednesday, January 28, 2009

लोकतंत्र की दहलीज पर खङा एक देश.............

बांग्लादेश की राजधानी ढाका से एक बांग्ला अखबार निकलता है -डेली इंकलाब। उसने अपने संपादकीय म
ें लिखा है-कुहासे में लिपटे हुए रेलवे स्टेशन पर आठ करोड़ यात्री पिछले सात सालों से एक ट्रेन के इंतजार में खड़े हैं। उनके हाथों में निर्वाचन 2008 का टिकट है और वे इंतजार कर रहे हैं गणतंत्र एक्सप्रेस का। न जाने यह ट्रेन कब आएगी...। यह कोई कल्पना नहीं है। यह इजहार है एक देश के मन को व्यथित कर रहे एक सपने का, जो पिछले दो साल से इमर्जंसी के साये में जी रहा था और मन में हजारों सपने और उम्मीदें संजोए हुए है। जी हां, उस देश का नाम है बांग्लादेश, आमार सोनार बांग्ला। सेना के प्रभुत्व वाली अंतरिम सरकार की अगुआई में बांग्लादेश में कई बार की हां-ना के बाद आखिरकार 29 दिसंबर को आम चुनाव होने जा रहे हैं। इस दिन देश के तकरीबन आठ करोड़ वोटर जातीय संसद यानी नैशनल असेंबली के 300 सदस्यों को चुनने के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। बांग्लादेश की संसद में कुल 330 सीटें हैं, जिनमें से 300 सीटों के लिए प्रत्यक्ष चुनाव होते हैं जबकि 30 सीटें महिलाओं के लिए सुरक्षित हैं। इनका चुनाव सत्तारूढ़ दल या गठबंधन करता है। वर्ष 2001 के बाद बांग्लादेश में चुनाव नहीं हो पाए क्योंकि पिछले दो सालों से देश का शासन सेना के साये में चल रहा था और इमर्जंसी लगी हुई थी। बांग्लादेश की दोनों बड़ी पार्टियों की नेता पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया और शेख हसीना वाजेद भ्रष्टाचार के आरोप में जेल की सलाखों के पीछे थीं। चुनाव कराने के लिए हुई सहमति के बाद ही दोनों को रिहा किया जा सका। चुनाव कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई एक अंतरिम सरकार को और मुख्य सलाहकार की जिम्मेदारी सौंपी गई डॉ. फखरुद्दीन अहमद को। मगर इमरजेंसी हटाने को लेकर खींचतान बनी रही और बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी यानी बीएनपी नेता बेगम खालिदा जिया के चुनाव बहिष्कार की धमकी के बाद ही 16 दिसंबर को इमर्जंसी हटाई गई। बांग्लादेश के वजूद में आने के बाद के पिछले 37 सालों में आठ बार देश में संसद का गठन हो चुका है। आखिरी आम चुनाव 2001 में हुए थे, जब बीएनपी ने बाजी मारी थी। बीएनपी ने 193 सीटें जीती थीं और उसका साथ दिया था 41 फीसदी वोटरों ने। बंगबंधु शेख मुजीब की बेटी शेख हसीना वाजेद की पार्टी अवामी लीग को बीएनपी से महज एक फीसदी कम वोट मिले थे मगर सीटों की बाजीगरी में वह पीछे छूट गई और उसे केवल 62 सीटों से संतोष करना पड़ा। एरशाद की 'जातीय पार्टी' को 14, जमात-ए-इस्लामी, बांग्लादेश को 17 और छोटे दलों को 15 सीटें मिली थीं। चुनाव के दौरान भी धांधलियों के आरोप लगे थे मगर बाद में हुए खुलासों ने सभी को चौंका कर रख दिया। आंकड़ों से पता चला कि 52 सीटों के 111 मतदान केंद्रों पर कुल वोटरों से दोगुना मतदान हुआ। इसी तरह 138 सीटों पर नब्बे से सौ फीसदी तक मतदान दिखाया गया। आरोप ये भी लगे कि कुछ बैलट बॉक्स मतदान केंद्रों तक पहुंचे ही नहीं और मतदान कर्मचारियों की मिलीभगत से उन्हें मतगणना केंद्र पर ही रखकर मनमाने तरीके से वोटिंग की गई। अब इस बार चुनाव आयोग पर ये दारोमदार है कि वह इन तोहमतों से अपना दामन बचाते हुए इस तरह से लोकतंत्र के इस उत्सव को अपनी तार्किक परिणति तक पहुंचाए कि लोगों और दुनिया का भरोसा स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की उसकी काबिलियत पर कायम हो सके। वैसे तो चुनाव मैदान में हमेशा की ही तरह छोटे बड़े कई दलों की भरमार है मगर मुख्य मुकाबला बीएनपी और अवामी लीग के ही बीच है। खालिदा जिया और शेख हसीना वाजेद के बीच आरोपों-प्रत्यारोपों की झड़ी लगी हुई है। दोनों ही पार्टियों ने वोटरों में से 90 फीसदी के मुस्लिम होने के कारण इस्लाम और इस्लामी कानूनों के तहत देश का शासन चलाने का वादा किया है। अगर बांग्लादेश के अखबारों और चुनावी विश्लेषकों की मानें तो अवामी लीग का पलड़ा भारी माना जा रहा है। अवामी लीग के चुनाव घोषणापत्र की एक खास बात यह है कि इसमें थोथे वादों की जगह देश को संकट से उबारने और बांग्लादेश की स्वर्ण जयंती 2021 को ध्यान में रखते हुए विजन 2021 के नाम से ठोस आर्थिक कदमों का वादा किया गया है। आम जनता के लिए यह बात बहुत ही उत्साह बढ़ाने वाली है। मगर दोनों ही पार्टियों के घोषणापत्र की एक बड़ी कमी यह है कि मुल्क में आए दिन होने वाली हड़तालों पर रोक लगाने के मसले पर दोनों ने ही चुप्पी साध रखी है। राजनीतिक जीवन पर कुंडली मार कर बैठा भ्रष्टाचार भी बांग्लादेश के लिए एक बहुत बड़ा सिरदर्द है और ये मसला दोनों ही पार्टियों को वोटरों के सामने बगलें झांकने को मजबूर कर सकता है। मगर मतदान के ठीक पहले बीएनपी नेता खालिदा जिया के छोटे बेटे अब्दुर रहमान कोको का बैंक खाता सिंगापुर में सील किए जाने और विजिलेंस जांच के आदेश से उनकी मुश्किलें बढ़ेंगी। कोको के खाते में 12 करोड़ रुपये जमा थे। गौरतलब है कि बांग्लादेश के आर्थिक विकास दर का 3 फीसदी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है, इसलिए वोटरों के लिए यह भी एक बड़ा मुद्दा है। देश की धीमी विकास दर और घटता विदेशी व्यापार भी राजनीतिक दलों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय होगा। जूट, चाय, कोयला, चमड़ा जैसी पारंपरिक वस्तुओं का व्यापार करने वाले बांग्लादेश की विश्व बाजार में हिस्सेदारी कुशल राजनीतिक और आर्थिक प्रबंधन के अभाव के चलते घट रही है और इस कारण तेजी से बेरोजगारी फैली है। इसलिए नई सरकार को जहां सेना का प्रभुत्व कम कर संसद की गरिमा और संप्रभुता बहाल करने की जिम्मेदारी लेनी होगी, वहीं आर्थिक मोर्चे पर भी देश को मजबूत करना होगा।

No comments:

Post a Comment